Friday, August 7, 2020

बंदा कमाल है 

क्या तो बेमिशाल है !

बंदी की 

मंदी की

और नज़रबंदी की 

खुद में धमाल है 

बंदा कमाल है। 


उसने कहा मान लो 

गाँठ बाँध जान लो 

सुनो वही गुनो वही

वह कहे धुनो वही 

हमने है मान लिया 

आँख बंद ठान लिया 

वह गले का हार है 

वही तारणहार है। 


उसके इशारें है 

यह जो नज़ारे हैं 

कहे वह धूप गीली 

सूरज पर चाँद बली 

उसने बताया है 

बाकी सब माया है 

उसके जो चार मित्र 

उनकी ही छाया है। 


भोंपूं गुलाम हैं 

चर्चा ये आम है 

झूठी यह बातें है 

सुनहली रातें हैं 

भूख प्यास रोज़गार 

बातें यह बेकार 

दुःख की कहानी है 

व्यर्थ है बेमानी है 

है वह विराजमान 

रखो उसका मान 

रोओ न चिल्लाओ तुम 

गान मंगल गाओ तुम 

पेट के भरने से 

स्वस्थ साफ़ रहने से 

देव का क्या नाता है 

उसे बस भाता है 

जय कहो जयगान करो 

तुम अफीमपान करो। 


श्रेष्ठ की न चाह करो 

बात यह गाँठ धरो 

हर दिन लड़ाई है 

उसने लगाई है 

तुम सिपाही होम  करो 

मन में ढाढ़स धरो 

तुम्हारा यह फ़र्ज़ है 

तुम पर क़र्ज़ है 

धर्म नाम डूब  मरो 

देश नाम लूट मरो 

तुम प्रजा वह राजा है 

दुंदुभि है बाजा है। 


होना उसका पर्व है 

बात बात गर्व है 

मर गया, गर्व है 

मार दिया, गर्व है 

मीलों पैदल, गर्व है 

वह उड़नछू, गर्व है 

भूख सहा, गर्व है

प्यास सही, गर्व है  

बंदी है, गर्व है 

मंदी है, गर्व है 

कांव कांव गर्व है 

गाँव गाँव गर्व है। 


देव है विधाता है राजा है त्राता है 

वह अवतार है। 

अबला है देश,

वह देश का भतार है। 





 



 





Thursday, August 6, 2020

तुम, तारणहार हो
स्वर्ग का द्वार हो 
धरती से छूटा नेह 
जदपि तुम निर्जल मेह 
तुझको सर्वस्व अर्पण 
धूम धाम से तर्पण  
रोज़गार दो या भूसी-चारा 
खोलूं मुंह जो, दो कारा
गाँव तेरे शहर तेरा 
नाम तेरा पुण्य मेरा 
तेरे  ही अखबार सारे 
तू ही बाज़ार तारे
भूख हो अकाल हो 
तेरा मायाजाल हो 
तेरी जय-जयकार है
ताज़ा माल डकार है 
तेरी मूंछें तेरी दाढ़ी 
मेरी मूर्छा नित् बाढ़ी
कीचण गुलाब है 
तेरा इक़बाल है 
दी हमें पहचान है 
झूठ नया ईमान है 
भुकमरी का नेवता है
तू हमारा देवता है
झूठ है फरेब है 
हिंसा, अतिरेक है 
तू कहे तो सब चंगा 
तू कठौती तू ही गंगा
वाद न संवाद है 
तेरा आशीर्वाद है।     
   
 
  

Wednesday, August 5, 2020

0५. ०८. २०२० 

अज्ञेय शांति या शून्य व्याप जाता है
ऐसे मौकों पर, 
जब दिल टूटता है और आवाज़ नहीं आती 
वक़्त के कूड़ेदान में फेंक खुद को 
छोड़ देते हैं हम 
उम्मीद। 
उम्मीद, लड़ पाने की 
उम्मीद, टिक पाने की 
जब टूट जाती है 
तभी उठ बैठो। 
कराहो, पुकारो, दो बद्दुआएं या मांगो कोई मन्नत। 

कर नहीं सकते तो, बोलो 
नहीं बोल सकते तो, लिखो 
कुछ नहीं कर सकने जैसा कुछ नहीं 
सर पटको 
उपवास करो 
चलो पैदल या दौड़ो। 

कुछ नहीं करने से तुम्हारी मौत भी रहेगी मुर्दा 
हो ज़िन्दा जब तक
करो कुछ। 


Sunday, August 2, 2020

तुम्हारा हुनर है, विजय।
तुम्हारी जय।

पूरा आकाश केवल तुम
खत्म हो रहा मैं क्रमशः।

तुम हो रौशन, भभक रहा मैं।

मेरे जलने के बाद 
बचा रहेगा जब अंधेरा केवल
लोग याद करेंगे तुमको।

तुम्हारी देन, मात्र अंधकार।

मसीहा!

न्याय का एक दिन तो आएगा
लिखी जाएंगी जब तेरी करतूतें।
तुम निबाह देती हो।

स्वीकार भाव में हिला देती हो सर,
कि नहीं कोई देव जो दिखता नहीं
और मन ही मन देव से मांग रही होती हो
सर्व शक्तिमानके नाराज़ न होने की मन्नत।
छिपा देती हो अखबार से काट
सहेजी नायक की कटिंग,
ख्वाब में अब भी जो मंडराता है।

सुन लेती हो मसीहा के लिए
तमाम कड़वे शब्द, 
मसीहा, जिसका होना ही है लोकतन्त्र।

तमाम किस्से हैं
तमाम बातें है
जिनसे निभा देती हो,
तुम
मोहब्बत मेरे लिए।

Friday, July 31, 2020

नींद से बोझिल पलकों को
रोके रखना,
मूंदते ही जिनके ख्वाब तैर उठें,
साथ पसर जाए सरगम।
पलकों को रोक
पढ़ना नाम एक बार फिर,
इस तरह,
तुम जवाब देती हो।
2.
सवाल ज़िन्दगी करती है,
बिना थके बिना रुके,
मैं चुप
तुम जवाब देती हो।
3.
तुम्हारे जब सवाल उठते हैं,
ज़िन्दगी रह जाती है मौन।

Thursday, July 30, 2020

 बार बार दूर तक दिखता है पानी
नदी फैल गई हो
या
सागर निकल आया हो बाहर।

अंत आता सा लगता है अपना
फिर दिखने लगता है
मस्तूल एक नाव का।

क्या तुम भी हो
लपेटे एक सफेदी
यह पूछते,
मोगरे की खुश्बू फैल जाती है।

क्या पास ही हो तुम।
1.
नदी की लहर पर,
सागर पर,
तैरता, एक चुम्बन पहुंचे तुम तक।

तमाम उम्र मैं करता रहा कम्पन।

2.

पलक के कोनों को छूकर
झपकने भर में
तुम्हारी आँखों में रख आया सपना

देखते जिसको काटी है उम्र सारी।

3.
तुम्हारे आने तक
रहेगी धरती
खिलेंगे फूल गाएंगे पक्षी।

बाद उसके न रहेगा होश हमें।
दिन का विलोप हुआ,
रात उदास हुई।
अंधेरे में,
मेरे गीतों को सुना, सराहा तुमने।
मन भर जाने से पहले,
छेड़ देता हूँ मैं नए स्वर
नया खेल दर खेल नया
नए नए नामों से खेल नया।

जगमगाते हैं लैम्प पोस्ट नारंगी,
स्टूडियो से छन
आती है तुम्हारे लिए जगमाती लहरें,
बरसात के कीड़ों सम
तुम्हे पसन्द हैं मेरे लैम्प पोस्ट।
अच्छा लगता है मुझे, तेरा बहल जाना।

रात कुछ और उदास हो जब,
मैं रचता हूँ खेल कोई
तुम्हारे लिए, प्रिय जनता।
मैं मसीहा हूँ, अंधेरी उदास रातों का।

Tuesday, July 28, 2020

हमारी हार के चर्चों से भर लिया दामन,
जीत के बाद भी मशरूफ हो हराने में।
तुम्हारे तौर तरीके तो कुछ निराले हैं
हम ही हम हैं अब भी, तेरे फ़साने में।
हमारी हार के मानी खत्म हुए,
वायदे तेरे, निकले सभी नकली।
बल, साहस, उद्यम, रास्ते नए
झूठ तेरे, तेरी क्रूर हंसी बस असली।
बेशर्म स्थापनाओं के, तुम शहंशाह हो,
मसीहा, बन्द करो लचर आवारापन।
करो कुछ वह भी, जो करने आए हो,
दो अभागे देश को कुछ अपनापन।

Monday, July 27, 2020

1.
खुदा था, खुदाई थी
कारिंदा बन वो आए फिर,
राजे महाराजे,
हमने शीश नवाया।
तुम हो अभी,
हमारा मसीहा, खुदा का कारिंदा
किसी गलती किसी आक्षेप से परे।

2.
तुम हो, तुम्हारा सर्कस है
तमाशबीन भी, हम शामिल हैं।
खेल रहे हो तुम
जिससे, वह हम हैं। हम देश हैं।

3.
बिना अंत की हैं, यह कविताएं
तुम्हारे लिए रचित,यह प्रार्थनाएं
मसीहा हो तुम, तुम अनंत हो,
हम प्रजा हैं
भोग पाते हैं, केवल अपना अंत।

Sunday, July 26, 2020

तुम मसीहा हो,
चुना तुमने मज़बूत होना।

हम देश हैं
हमने चुना है तुम्हे
देश का मज़बूत नेता।

हमारे लिए आसान था यह,
बनस्पति
चुनना मज़बूत देश और तुम्हे नेता।

Saturday, July 25, 2020

1.
मौन भी, वाचाल भी
एक मेव हित उसका,
सत्ता।
अखण्ड सत्ता।

2.
निपट अकेले की,
चाहत का अंत नहीं।
अश्मेध, उसका यज्ञ,
हम, सहर्ष समिधा।

3.
सीने में ख़ंजर है,
ख़ंजर उसका, अपना सीना।
उसके निमित्त है, देश! तेरा जीना।

Friday, July 24, 2020

1.
साथ होते, तो होते जुदा,
तुम नहीं, तो तुम-सा हो गए
खड़े रहे यहीं,
रुके तो फिर कहीं नहीं गए।

2.
याद को बांध लिया,
भूल गए खुद को। 

3.
अब नहीं, कहीं अँधेरा
अब नहीं अकेलापन। 

1.
नहीं रुकते,
चलते जाते हैं।
आता है उन्हें, सतत,
चलना चाल।
2.
मसीहा, चलता है,
हम अनुगामी हैं।
करता जाता है, संकरा
वह, अपना जाल।
3.
हमारा सीना है,
ख़ंजर तेरा।
गुनाह खुद ही किया,
तेरा कमाल।
1.
सीख रहे लिखना,
न केवल, तुम।
लिख रहा मैं भी, खुद को।
आखिरी शब्द गढ़े मेरे,
बुन रहे, तुम को-मुझको।
2.
मुझे पता है,
दुनिया तुम्हारे अनुकूल नहीं
बेहतर बनाएं, आओ इसे।
3.
डर लगे जो कभी अकेले, याद रखना
जीन, कोड मात्र नहीं,
संचित सम्पदा है,
मुझसे, तुम तक।
4.
मानव जाति का अगला मिशन हो,
तुम,
तुम्हारा जन्मदिन, एक और कदम।।
5.
मेरे बेटे, जन्मदिन मुबारक हो।
1.
तुम कहती हो,
याद स्पर्श है, प्रियतम की।
तुम कहती हो, तो सच होगा।
2.
तुम्हारे कहने से इश्क़ खिलता है,
महकता है, याद का कोना।
नहीं मिटता लेकिन, तेरा न होना।
3.
तुम्हारे रहने से, रहती है लौ अडिग
बरसते रहते हैं हरसिंगार।
तेरे रहने में, रहता है तेरा छूना।
भोंपुओं की राय है,
शासन, गाय है।
पूज्य दरबारी हैं,
दान के अधिकारी हैं।
मसीहा की आन है,
चढ़े तीर कमान हैं।
तोप को हराएंगे,
दूर तक,भगाएंगे।
सेवा का मौका है,
आउट भी चौका है।
मसीहा, महान है
सर्व शक्तिमान है।
पावन पवित्र है,
साक्षात गंगा है।
ऐसा है पहली बार,
सब कुछ चंगा है।
शांति शांति शांति.........

मसीहा, तुम अजेय हो

1.
मसीहा, तुम अजेय हो,
तुम ही, देव हो।
तुम कृष्ण, हम मीरा,
सब कोयला, तुम हीरा।
2.
पता तुम्हे भी है, अंधकार काल है,
देश पर घुमड़ता, आफत अकाल है।
अनवरत खेल है, इंतेज़ाम पूरा
तुम हो मदारी, हम हैं जमूरा।
3.
तेज़ है समय चक्र, अद्भुत काल है
भक्ति, चारण, रीति का, मिश्रण कमाल है।
शक्तिमान, सिद्ध तू एकमेव नायक है,
अंधकार काल के, हम सब गायक हैं।
1.
मगन हैं हम,
जयगान है।
जय है जयकारा है
सभा का वितान है।
2.
मसीहा धृतराष्ट्र,
हम, गांधारी।
नवाचार- बन्द आंख
अन्धता संचारी।

फरेब से उसके, तू निकल बाहर

कविता!
सुन, तू मत ढो, अपने कंधों पर उसे।
जो झूठ है,
मत गवाही दे उसकी
सपने झूठ के, शुभ नहीं।
छंद के अपने नियमों तले
मज़बूर नहीं तू ।
फरेब से उसके, तू निकल बाहर,
और मुझे भी खींच इस कूप से परे।
कविता !
साहस ले और लिख अपनी जगह जनता।।

उसका डर निजी है, हम सबका, सार्वजनिक।

1.
उसका डर निजी है,
हम सबका, सार्वजनिक।
2.
वह डरता है स्व के लिए।
हम डरने लगते हैं,
हम सब के लिए,
इस देश के लिए,
इस समाज के लिए।
लगता है,
हम डरते हैं हमारे लिए।
सच यह कि,
हम सब डरते हैं, उसी के लिए।
3.
मसीहा, डरता है, सामान्य हो जाने से।
4.
हम भेडें, डरते हैं, उसके सामान्य हो जाने से।

हम उसकी भेड़ें

1.
मैं मसीहा हूँ
खुले आम कहा उसने
हम बन गए, उसकी भेड़ें।
2.
पता लगा, वह मदारी है
मसरूफ रहे, हम खेल में ।
3.
बचपना, हमारा।
4.
आज तक वह मसीहा है
हम उसकी भेड़ें।

कितना बड़ा फ्राड है, तेरा हीरो होना।

1.
होम्स,
शरलॉक होम्स।
एक शरलॉक होम्स, होता अगर आज भी,
बता देता तू क्या है
डिड्यूस करके बता देता
कितना बड़ा फ्राड है,
तेरा हीरो होना।
और हम कह उठते, हाँ, यह तो, सच ही है।
2.
तू खुदा है,
तेरी एक खुदाई है
बड़ी मेहनत से तूने माया रचाई है।
जानते हैं थोड़ा तो, तूझे जानने वाले भी
तूझे खुदा मानने वाले
तुझे खुदा बना
उनका भी चलता व्यापार है
तू खुदा है

झूठ पर ही, अब ठिठरे

1.
कुछ झिझक से ही, कहा उसने, अर्ध सत्य।
फिर, बिन झिझक, असत्य।
किंचित झिझक से सुना पहले,
झूठ पर ही, अब ठिठरे।
2.
उसे पता है, हमे क्या सुनना,
हमे पता है वही, कहता मन की।
सिवा उसके, नहीं सुनते।
3.
झूठ उसका ही हमारा सच
हमे पता भी नहीं, सत्य अन्विज्ञ, नहीं।
4.
उसे नहीं, हमे उसकी जरूरत।
हमे चाहिए वही, फिर फिर वही।

शब्द नहीं सूझ रहा

पहली बार दिल टूटने से भी ज्यादा,
ज्यादा, संतान को पीड़ा में देख उठने वाली पीड़ा से, इतना कि शब्द नहीं सूझ रहा
चन्द रोटियां बिखरी रेल लाइन पर,
इतना दर्द दे रही
जैसे मर गए हों।
मर जाने पर खुद के
हो उठता होगा, ऐसा दर्द।

१. पूछो राम  कब करेगा  यह कुछ काम । २. कर दे सबको  रामम राम  सत्य हो जाए राम का नाम  उसके पहले बोलो इसको  कर दे यह कुछ काम का काम । ३. इतना ...