Sunday, September 26, 2021

विषय- हिंदी-भाषा, पाठ-२ - विपरीत शब्द-युग्म

कक्षा - ०२, विषय- हिंदी-भाषा, पाठ-२ - विपरीत शब्द-युग्म 

१. सार्थक - निरर्थक

पुरानी किताब: सार्थक क्रिया, निरर्थक प्रयास। 

नई किताब: सार्थक जीत, निरर्थक विपक्ष।  

२. अर्थ-अनर्थ

पुरानी किताब: झाँसना - अर्थ, वैर-अनर्थ। 

नई किताब: जीत- अर्थ, हार- अनर्थ।  

३. उपयोगी -अनुपयोगी

पुरानी किताब: रामधुन उपयोगी, गांधी अनुपयोगी ।

नई किताब: दंगा उपयोगी, संविधान अनुपयोगी। 


 


Saturday, September 25, 2021

 ठहरी बात रही 

मेरी तेरी, पूर्ण है वचन उसका 

कहा अनकहा 

मसीहा स्वर है, शब्द है, भाव है 

हम ठहरे हैं, ठहरी बात पर.


2.

हमारा काम,

काम आ जाना 

मसीहा, वही काम है.


3.

राग लय विन्यास भिन्न नहीं 

मेरे तेरे 

हमारा अनुनाद, मसीहा संग. 


Thursday, September 23, 2021

अनायास मुस्कान

तीव्र प्रेय आकांक्षा 

कभी 

स्नायु दबाव

आस पास रही हो तुम

बिना कॉमा लिखी गई कविता 

पूर्ण विराम पाती तुम पर.


2.

तुम 

सर्वनाम हो

विस्थापित करती मेरी संज्ञा को.


3.

मेरी महत्ता

तुम विशेषण. 


Sunday, September 19, 2021

भाषा

एक भाषा

क्या होगा उसका जो ढोती है केवल झूठ.

याद रखी जायेगी, एक विलुप्त झूठी नदी की तरह 

या 

बहती रहेगी, ढोती हुई लोकतंत्र का सच 

मसीहा की जयकार 

संस्थाओं की लाश।  

बहती रहेगी क्या तब भी जब आडम्बर नहीं होंगे 

नहीं होंगे पंचसाला चुनाव। 

जब झूठ नहीं होगा फ़र्क़ सच से,

क्या ज़रुरत होगी भाषा की।   

Thursday, June 10, 2021

सर पर ताज हो

सर पर ताज हो 

मन भर आनाज हो 

काम नहीं काज हो 

साहेब सा  राज हो। 


चार चापलूस हों 

हज़ार जासूस हों 

कोटि कोटि भक्त हों 

बोटी हो रक्त हो 

कभी नहीं हार हो 

जय हो जयकार हो।  


नंगा हो भूका  हो  

मोटा हो सूखा हो 

शुन्य प्रतिकार हो 

अपनी सरकार हो।  






Tuesday, February 16, 2021

महान राष्ट्र यूं जन्म ले रहा है

अंधे कवियों ने लिखी महान कविताएं 

बहरे बीथोवेन ने सिम्फनी 

कटे पैर लोग चढ़ जाते हैं पहाड़।


नागरिक चाहते हैं

राष्ट्र भक्त होना। 

चाहते हैं,

न बदले कुछ भी  

रटे हैं, विकल्पहीनता।


महान राष्ट्र यूं जन्म ले रहा है।   

 

Saturday, February 13, 2021

तमाशा 

गुजर रहे वक़्त का नाम है, तमाशा।

गटर 

सार्वजनिक जीवन है, गटर। 

खेल 

तमाम रियाया संग हो रहा है, खेल। 

जेल 

बिना चहारदीवारी बिन दरवाज़ा जहालत की खुली जेल। 

नेता 

कौन ?

देश 

बेहतर है मौन। 



Tuesday, February 9, 2021

सांझ ढल जाना 
चलते चलते हो जाना रात,
यूं तो कोई कारण नहीं चिंता का 
गर रात ले आए विश्राम 
सूर्यास्त में खो गई रोशनी को स्वप्न में खोजने का हो उपक्रम.

सुबह की खातिर 
रात कट जाती है 
कई रात कट जाती है .

भय का कारण है अँधेरा 
जो दैव थोप देते हैं 
रात जो आसुरी माया हो 
रात जिसमे जिन्न ठग लेते हों ख्वाबों को चाहतों को 
रात. जिसकी चाहत हो रात के अनंत की. 

रात जिसे राजा ने कह रखा दिन है 
अँधेरा जिसे प्रकाश नाम दिया है 
ऐसे अँधेरे से डरता हूँ मैं 
इस रात से खूब डरता हूँ मैं .


एक विशाल नदी 
पश्चिम से पूरब 
पूरा उत्तर, अंश दक्षिण 
बहती है,
मेरे वक्तृव्य की 
मेरे ऐश्वर्य की। 

मेरे भाव भरे 
छत्तीस गुणों से सने 
भक्ति की चरम सुख 
सहज उपलब्ध हैं 
नदी के जल में। 

आकंठ डूब कर 
भक्ति का पान है 
मेरा गौरव है 
मेरा ज्ञान है। 

पश्चिम से पूरब तक उत्तर से मध्य क्षेत्र 
मेरा प्रसाद है बट रहा जो गलियों में तालों में खेतों में 
मेरी भक्ति की फसल देश भर लहलहाए
लौट कर तुम भी तो शरण मेरी आए। 

बजे मेरा डंका 
साकेत या लंका 
मसीहा हूँ मैं 
देश और कुछ नहीं मेरा विस्तार है। 




Monday, February 8, 2021

न ऊष्मा न विस्तार न तरल 

प्रेमहीन बोझिल।

नहीं दे सकता हूँ 

उष्णता संबंधों को,

उल्लास का आकाश,

संबंधों का उत्प्लावन 

प्रेम की तरलता 

धरा का आधार। 


पंचतत्वहीन मैं 

क्रियाहीन पड़ा हुआ 

समझता न सोचता हूँ 

व्यर्थ हो जाने का अनुभव आभास। 






Saturday, February 6, 2021

कहीं नहीं गए हम, 

न नर्क न स्वर्ग 

कहीं नहीं गए हम, 

मर गए और खो गए। 


2.

तकरीबन न के बराबर ख़ुशी 

बिलकुल नहीं दुःख, 

न अच्छा न बुरा 

मौत में कुछ तो ख़ास नहीं। 


3.

ध्वनि, वर्णमाला से परे 

भाव, जिनका नहीं कोई चित्र 

रंग नहीं, बेरंग नहीं , न बोला न रहे चुप 

मर गए, तुमको खबर नहीं।   

Friday, February 5, 2021

भय की चौखटे हैं
उस पार है निर्जन। 

मेरी सत्त्ता से परे  
तुम अकेले
तुम निर्बल
डांक नहीं सकते तुम मेरी सत्ता के द्वार 
दिन भर तुम जयकार 
रात करूँ मैं शिकार तुम्हारे विचलन का 
स्वस्थ चिंतन का 
स्वाधीन मनन का। 

तुम्हारी परिधि हूँ मैं 
तुम मेरी छाया हो 
हम साथ द्वन्द हैं 
तुम मेरी माया हो। 

तुम्हारे हीन का, भय का, गर्व का मैं उत्पाद हूँ 
तुम मेरे भक्त जन 
मैं तेरा भगवान् हूँ। 
 


Thursday, February 4, 2021

एक वह ज़िंदा है

समय नहीं समतल
इन दिनों रोज़ ही,
भहरा के गिर जाती है कोई प्रतिमा 
पूज्य कोई च्युत हो जाता है। 

जीवन और कुछ ठहर जाता है।

2.
इन दिनों रोज़ ही 
मर जाता है कोई चूहा 
कुछ और तेज़ रोती है बिल्ली 
भूके पेट सोते हैं बच्चे 
बाप कर बैठा है अनसन .

तमाम कस्बे की आखिरी ज़िद है 
बच्चों की भूख . 

3.
एक की शान 
उसके, बान की खातिर 
नदियों में जहर भर, बादल को कैद कर 
खेतों को कर लज्जित 
चर रहे हम फसल साथ की, सामर्थ्य की, करुणा की, प्रेम की 
प्रेम पर विश्वास की .

एक वह ज़िंदा है 
हम सब विजूका है.









Saturday, January 30, 2021

रहने दो हमको अपनी ही फुर्सत में

1. 

साधारण रह जाना,

परिचित बरामदों में रह जाना अनचिह्ना 

साधारण बात है 

और साधारण बातों की की तरह ही,

सहज। 


2. 

चकाचौंध की रौशनी पराई है, 

प्रसिद्धि की, सफलता की 

और  हम रह जाते चाँदनी की छाया में श्वेत वस्त्र भूतों से। 

कृत्रिम निर्मितियों की के प्रेत द्वार 

क्या ही ज़रूरी हैं। 


3. 

पहाड़ में पहाड़ी से, मैदान में मैदानी 

वंचित महत्त्व से, अर्थ की आभा से 

रहने दो हमको 

अपनी ही फुर्सत में। 



Wednesday, January 27, 2021

1. 

कुछ भी नहीं था .

इक शिकायत रही, कभी कुछ न रहने की.

कुछ नहीं था, फिर 

 वह लगा छीनने,सब, 

जो घुल मिल गए थे हममें

एक एक करके,

ख्वाब, आज़ादी, हक़ और बराबरी .  


2. 

आश्चर्य के, फिर दैन्य के, गीत लिखे हमने 

भरी फिर, विरोध की हुंकार। 

अब बारी थी आवाज़ की, 

आवाज़ छीने जाने की 

हमारे शब्दों पर हमारे दृश्यों पर, हमारे चित्रों पर

कर गूंगा हमें,

उसके गीत गाये जाने की .


3. 

यह दिन थे जब हम मौन हुए 

और साफ़, बिलकुल साफ़ गूंजने लगा उसका अट्ठास. 

Monday, January 25, 2021

1.

उदासी के उदास ख्यालों संग 

ज़िन्दगी चुप गा रही होती है मौत की धीमी धुन 

और जब, व्यर्थ बीत जाने का गीत लिख रहा होता है 

मुझे 

आ जाती हो,

तुम। 


2. 

हर बार नई एक शाख पनपती है 

रोशनी फैलती है आहिस्ता 

तुम पसरती हो, मेरे होने में 

हर बार, एक अकेलापन चला आता है 

उजास ज़िन्दगी का, जम जाता है 

शैल बर्फ बेरंगा, बस हासिल। 



 

Friday, January 22, 2021

1.

सन्नाटे का संगीत 

कैनवास है ज़िन्दगी का 

बैकग्रॉउंड में रहती है 

निरंतर उदासी। 


2. 

धुंध तह धुंध,

अंधेरों की तह 

खिड़की के पास रुकी उदास रोशनी 

ठिठकी सिमटी सिकुड़ी 

खिन्न बैठी है ज़िन्दगी। 


3. 

ठण्ड में अँधेरे कमरे का कोना 

और मैं। 


बस इतनी ही कहानी। 

 

Sunday, January 17, 2021

वह दिन भी आएगा

 1. 

सुनाई देगी फिर आवाज़ 

छिप गई है जो,

तर्क की, संवाद की, जन की, जनतंत्र की। 


२. 

उम्मीद अच्छी चीज़ है 

मानना कि, दिन है तो रात भी 

उम्मीद रखना कि, बदलेगा वह या निज़ाम उसका। 


३. 

समय की पांत में 

वह दिन भी आएगा, नहीं होंगे वह 

छल्लों पर छल्ले बनते जाएंगे और उनकी दी चोट भी न पहचान में आएगी। 

Saturday, January 9, 2021

 1.

क़त्ल किया वक़्त का 

फिर जिया, 

शून्य में .


2.

तुमसे परे, मुझसे परे आदि अंत से परे 

शून्य में, 

जिया फिर .


3.

तुम घटे, हमसे

उपजा शून्य,

शून्य ही नियति अब . 






Thursday, January 7, 2021

 1.

बीतते जा रहे हैं सामने से,

खेत दर खेत 

खेत जो परती रह गए हैं 

खेत जो सोना हो गए हैं 

लग रही है लू 

अब जबकि बसंत आने वाला है 

दिख रहे हैं साल पिछले जो बीते निरंतर 

दिख रहा है 


जी रहे थे जिसे वह भ्रम था. 

बीत गए बीस वर्ष.


2.

चुप चाप बदल गया साल 

साल,

जिसे 2020 होना था.


वैभव का, उत्थान का साल.

Wednesday, January 6, 2021

 1.

भूगोल की किताब में लिखी हो शायद 

उम्र 

नदियों की 

बहते झरनों की,

लिखा हो शायद 

कौन युवा प्रौढ़ कौन, कौन मुग्धा.

समाज शास्त्र नहीं लिखता लेकिन 

लड़कियाँ जी रही होतीं हर अवस्था .


2.

खिले, अधखिले, अनखिले फूलों से 

चिड़िया से 

गंध से या स्वाद से 

तुलना बेमानी है, 

अर्थहीन हैं कविताएं. 


लड़कियों खुद उपमेय निज उपमान. 


3.

नदी, नदी है 

लडकियां, लडकियां 

नदी देख फिर भी याद आती हैं वह तमाम लडकियां 

जिनके भूगोल की किताब तक सिमटा है 

जीवन का अर्थशास्त्र.

Tuesday, January 5, 2021

 हांकता है मसीहा 

भेड़िये भी 

भेड़ भी 

एक सीध में, झुके सर चलते जाते हैं 

भेड़ भी, भेड़िये भी .


प्रजातंत्र का रामराज्य है . 


2.

उदास आँखों देखते हैं 

अँधा कुआँ, अथाह गहरा

और 

हुआँ हुआँ करते हैं .


हम वोटर, हम अनुचर, हम पब्लिक .


3.

एक लम्बी नींद में है 

तंत्र 

हमारे ख्वाब उसक

हमारा काम पिसना, पिस रहें हैं हम .

Sunday, January 3, 2021

१. 

बेमुरौवत निकले ख्वाब 

ख्वाब न आँखों से निकले 

रहे गए ख्वाब आँखों में 

न कोई और ठौर ठिकाना।  

२. 

वही दिन वही रात रहे। 

दिन और रात, समय सिमटा 

साल महीने हफ्ते बेमानी 

वही दिन वही रात रहे 

न बदला कुछ। 

३. 

नहीं पता, 

क्या नया साल का मतलब।  


 

Saturday, January 2, 2021

1.

इंतज़ार लम्बा 

पांच फुट पांच इंच 

हासिल सिफर। 


२. 

संभाल रखा मैं ताउम्र मैंने 

तमाम उम्र दूर रहा 

तुझसे 

खुदसे. 


3.

अंध कुआं जीवन 

दीखता मुझको 

धृतराष्ट्र न होने की कीमत .

१. पूछो राम  कब करेगा  यह कुछ काम । २. कर दे सबको  रामम राम  सत्य हो जाए राम का नाम  उसके पहले बोलो इसको  कर दे यह कुछ काम का काम । ३. इतना ...