उस पार है निर्जन।
मेरी सत्त्ता से परे
तुम अकेले
तुम निर्बल
डांक नहीं सकते तुम मेरी सत्ता के द्वार
दिन भर तुम जयकार
रात करूँ मैं शिकार तुम्हारे विचलन का
स्वस्थ चिंतन का
स्वाधीन मनन का।
तुम्हारी परिधि हूँ मैं
तुम मेरी छाया हो
हम साथ द्वन्द हैं
तुम मेरी माया हो।
तुम्हारे हीन का, भय का, गर्व का मैं उत्पाद हूँ
तुम मेरे भक्त जन
मैं तेरा भगवान् हूँ।
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