पश्चिम से पूरब
पूरा उत्तर, अंश दक्षिण
बहती है,
मेरे वक्तृव्य की
मेरे ऐश्वर्य की।
मेरे भाव भरे
छत्तीस गुणों से सने
भक्ति की चरम सुख
सहज उपलब्ध हैं
नदी के जल में।
आकंठ डूब कर
भक्ति का पान है
मेरा गौरव है
मेरा ज्ञान है।
पश्चिम से पूरब तक उत्तर से मध्य क्षेत्र
मेरा प्रसाद है बट रहा जो गलियों में तालों में खेतों में
मेरी भक्ति की फसल देश भर लहलहाए
लौट कर तुम भी तो शरण मेरी आए।
बजे मेरा डंका
साकेत या लंका
मसीहा हूँ मैं
देश और कुछ नहीं मेरा विस्तार है।
No comments:
Post a Comment