इन दिनों रोज़ ही,
भहरा के गिर जाती है कोई प्रतिमा
पूज्य कोई च्युत हो जाता है।
जीवन और कुछ ठहर जाता है।
2.
इन दिनों रोज़ ही
मर जाता है कोई चूहा
कुछ और तेज़ रोती है बिल्ली
भूके पेट सोते हैं बच्चे
बाप कर बैठा है अनसन .
तमाम कस्बे की आखिरी ज़िद है
बच्चों की भूख .
3.
एक की शान
उसके, बान की खातिर
नदियों में जहर भर, बादल को कैद कर
खेतों को कर लज्जित
चर रहे हम फसल साथ की, सामर्थ्य की, करुणा की, प्रेम की
प्रेम पर विश्वास की .
एक वह ज़िंदा है
हम सब विजूका है.
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