जबकि मौन हो तुम
मैं पढ़ रहा हूँ, भाषा
उग आई दीवार इक, गिर पड़ी है। तक़रीबन।
२.
जबकि शांत चुप चाप हो तुम
मैं गिन रहा हूँ, लहर
संयत स्वर में, रागिनी घुल गयी है। मधुर।
३.
अब जबकि बेचैन हो तुम
मैं माप रहा, दूरी
परे समय के, रच रहे साथ हम। हरदम।
मैं पढ़ रहा हूँ, भाषा
उग आई दीवार इक, गिर पड़ी है। तक़रीबन।
२.
जबकि शांत चुप चाप हो तुम
मैं गिन रहा हूँ, लहर
संयत स्वर में, रागिनी घुल गयी है। मधुर।
३.
अब जबकि बेचैन हो तुम
मैं माप रहा, दूरी
परे समय के, रच रहे साथ हम। हरदम।