tag:blogger.com,1999:blog-29741474899675596672024-03-14T02:25:49.578+05:30AALAAP...............RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.comBlogger272125tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-70075515814889386532024-01-23T23:24:00.002+05:302024-01-23T23:24:56.588+05:30<p>१.</p><p>पूछो राम </p><p>कब करेगा </p><p>यह कुछ काम ।</p><p>२.</p><p>कर दे सबको </p><p>रामम राम </p><p>सत्य हो जाए राम का नाम </p><p>उसके पहले बोलो इसको </p><p>कर दे यह कुछ काम का काम ।</p><p>३.</p><p>इतना अब तुम कर दो राम </p><p>बना दो सबके बिगड़े काम </p><p>बोलो इसको </p><p>करले काम </p><p>कब तक बनें हम उल्लू राम ।</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-6473256115657011362022-01-01T11:59:00.002+05:302022-01-01T11:59:59.111+05:30तंत्र से जन घोंट कर बना वह ईसा है <p>बहुत लम्बे कान हैं, </p><p>सुनते नहीं कुछ साजिश सिवा </p><p>नुकीली लम्बी नाक है, </p><p>सूंघते हैं साजिश </p><p>आंखों से अँधा है </p><p>अंधा तो अंधा है। </p><p>नेता है गंदा है। </p><p>चाक मध्य पीसा है </p><p>जनता का कीसा है। </p><p>पर </p><p>पूज्य है, पूजनीय है </p><p>महा है, महनीय है </p><p>तंत्र से जन घोंट कर </p><p>बना वह ईसा है </p><p>अपना </p><p>मसीहा है। </p><p><br /></p><p><br /></p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-35248223874546447322021-09-26T11:33:00.004+05:302021-09-26T11:34:59.842+05:30विषय- हिंदी-भाषा, पाठ-२ - विपरीत शब्द-युग्म <p><b><u>कक्षा - ०२, विषय- हिंदी-भाषा, पाठ-२ - विपरीत शब्द-युग्म </u></b></p><p><b>१.</b> सार्थक - निरर्थक</p><p>पुरानी किताब: सार्थक क्रिया, निरर्थक प्रयास। </p><p>नई किताब: सार्थक जीत, निरर्थक विपक्ष। </p><p><b>२.</b> अर्थ-अनर्थ</p><p>पुरानी किताब: झाँसना - अर्थ, वैर-अनर्थ। </p><p>नई किताब: जीत- अर्थ, हार- अनर्थ। </p><p><b>३.</b> उपयोगी -अनुपयोगी</p><p>पुरानी किताब: रामधुन उपयोगी, गांधी अनुपयोगी ।</p><p>नई किताब: दंगा उपयोगी, संविधान अनुपयोगी। </p><p><br /></p><p> </p><p><br /></p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-19305681609429099612021-09-25T23:25:00.003+05:302021-09-25T23:25:24.297+05:30<p> ठहरी बात रही </p><p>मेरी तेरी, पूर्ण है वचन उसका </p><p>कहा अनकहा </p><p>मसीहा स्वर है, शब्द है, भाव है </p><p>हम ठहरे हैं, ठहरी बात पर.</p><p><br /></p><p>2.</p><p>हमारा काम,</p><p>काम आ जाना </p><p>मसीहा, वही काम है.</p><p><br /></p><p>3.</p><p>राग लय विन्यास भिन्न नहीं </p><p>मेरे तेरे </p><p>हमारा अनुनाद, मसीहा संग. </p><p><br /></p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-59674812215843793012021-09-23T22:19:00.004+05:302021-09-24T21:39:10.926+05:30<p>अनायास मुस्कान</p><p>तीव्र प्रेय आकांक्षा </p><p>कभी </p><p>स्नायु दबाव</p><p>आस पास रही हो तुम</p><p>बिना कॉमा लिखी गई कविता </p><p>पूर्ण विराम पाती तुम पर.</p><p><br /></p><p>2.</p><p>तुम </p><p>सर्वनाम हो</p><p>विस्थापित करती मेरी संज्ञा को.</p><p><br /></p><p>3.</p><p>मेरी महत्ता</p><p>तुम विशेषण. </p><p><br /></p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-43062052680712892172021-09-19T11:02:00.004+05:302021-09-19T11:03:31.660+05:30भाषा<p>एक भाषा</p><p>क्या होगा उसका जो ढोती है केवल झूठ.</p><p>याद रखी जायेगी, एक विलुप्त झूठी नदी की तरह </p><p>या </p><p>बहती रहेगी, ढोती हुई लोकतंत्र का सच </p><p>मसीहा की जयकार </p><p>संस्थाओं की लाश। </p><p>बहती रहेगी क्या तब भी जब आडम्बर नहीं होंगे </p><p>नहीं होंगे पंचसाला चुनाव। </p><p>जब झूठ नहीं होगा फ़र्क़ सच से,</p><p>क्या ज़रुरत होगी भाषा की। </p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-87943285932487504142021-06-10T20:33:00.002+05:302021-06-11T12:51:59.660+05:30सर पर ताज हो<p>सर पर ताज हो </p><p>मन भर आनाज हो </p><p>काम नहीं काज हो </p><p>साहेब सा राज हो। </p><p><br /></p><p>चार चापलूस हों </p><p>हज़ार जासूस हों </p><p>कोटि कोटि भक्त हों </p><p>बोटी हो रक्त हो </p><p>कभी नहीं हार हो </p><p>जय हो जयकार हो। </p><p><br /></p><p>नंगा हो भूका हो </p><p>मोटा हो सूखा हो </p><p>शुन्य प्रतिकार हो </p><p>अपनी सरकार हो। </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-84167705557644653702021-02-16T12:45:00.004+05:302021-02-16T12:45:44.223+05:30महान राष्ट्र यूं जन्म ले रहा है<p>अंधे कवियों ने लिखी महान कविताएं </p><p>बहरे बीथोवेन ने सिम्फनी </p><p>कटे पैर लोग चढ़ जाते हैं पहाड़।</p><p><br /></p><p>नागरिक चाहते हैं</p><p>राष्ट्र भक्त होना। </p><p>चाहते हैं,</p><p>न बदले कुछ भी </p><p>रटे हैं, विकल्पहीनता।</p><p><br /></p><p>महान राष्ट्र यूं जन्म ले रहा है। </p><p> </p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-60773967416812338272021-02-13T15:19:00.008+05:302021-02-13T15:19:56.053+05:30<p>तमाशा </p><p>गुजर रहे वक़्त का नाम है, तमाशा।</p><p>गटर </p><p>सार्वजनिक जीवन है, गटर। </p><p>खेल </p><p>तमाम रियाया संग हो रहा है, खेल। </p><p>जेल </p><p>बिना चहारदीवारी बिन दरवाज़ा जहालत की खुली जेल। </p><p>नेता </p><p>कौन ?</p><p>देश </p><p>बेहतर है मौन। </p><p><br /></p><p><br /></p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-15326522731887154532021-02-09T21:08:00.004+05:302021-02-09T21:08:59.266+05:30सांझ ढल जाना <div>चलते चलते हो जाना रात,</div><div>यूं तो कोई कारण नहीं चिंता का </div><div>गर रात ले आए विश्राम </div><div>सूर्यास्त में खो गई रोशनी को स्वप्न में खोजने का हो उपक्रम.</div><div><br /></div><div>सुबह की खातिर </div><div>रात कट जाती है </div><div>कई रात कट जाती है .</div><div><br /></div><div>भय का कारण है अँधेरा </div><div>जो दैव थोप देते हैं </div><div>रात जो आसुरी माया हो </div><div>रात जिसमे जिन्न ठग लेते हों ख्वाबों को चाहतों को </div><div>रात. जिसकी चाहत हो रात के अनंत की. </div><div><br /></div><div>रात जिसे राजा ने कह रखा दिन है </div><div>अँधेरा जिसे प्रकाश नाम दिया है </div><div>ऐसे अँधेरे से डरता हूँ मैं </div><div>इस रात से खूब डरता हूँ मैं .</div><div><br /></div><div><br /></div>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-21032962933331745672021-02-09T00:39:00.002+05:302021-02-09T00:39:59.802+05:30एक विशाल नदी <div>पश्चिम से पूरब </div><div>पूरा उत्तर, अंश दक्षिण </div><div>बहती है,</div><div>मेरे वक्तृव्य की </div><div>मेरे ऐश्वर्य की। </div><div><br /></div><div>मेरे भाव भरे </div><div>छत्तीस गुणों से सने </div><div>भक्ति की चरम सुख </div><div>सहज उपलब्ध हैं </div><div>नदी के जल में। </div><div><br /></div><div>आकंठ डूब कर </div><div>भक्ति का पान है </div><div>मेरा गौरव है </div><div>मेरा ज्ञान है। </div><div><br /></div><div>पश्चिम से पूरब तक उत्तर से मध्य क्षेत्र </div><div>मेरा प्रसाद है बट रहा जो गलियों में तालों में खेतों में </div><div>मेरी भक्ति की फसल देश भर लहलहाए</div><div>लौट कर तुम भी तो शरण मेरी आए। </div><div><br /></div><div>बजे मेरा डंका </div><div>साकेत या लंका </div><div>मसीहा हूँ मैं </div><div>देश और कुछ नहीं मेरा विस्तार है। </div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-11718577028942826282021-02-08T23:20:00.005+05:302021-02-08T23:20:54.449+05:30<p>न ऊष्मा न विस्तार न तरल </p><p>प्रेमहीन बोझिल।</p><p>नहीं दे सकता हूँ </p><p>उष्णता संबंधों को,</p><p>उल्लास का आकाश,</p><p>संबंधों का उत्प्लावन </p><p>प्रेम की तरलता </p><p>धरा का आधार। </p><p><br /></p><p>पंचतत्वहीन मैं </p><p>क्रियाहीन पड़ा हुआ </p><p>समझता न सोचता हूँ </p><p>व्यर्थ हो जाने का अनुभव आभास। </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-32045388541399844032021-02-06T14:39:00.001+05:302021-02-06T14:42:11.369+05:30<p>कहीं नहीं गए हम, </p><p>न नर्क न स्वर्ग </p><p>कहीं नहीं गए हम, </p><p>मर गए और खो गए। </p><p><br /></p><p>2.</p><p>तकरीबन न के बराबर ख़ुशी </p><p>बिलकुल नहीं दुःख, </p><p>न अच्छा न बुरा </p><p>मौत में कुछ तो ख़ास नहीं। </p><p><br /></p><p>3.</p><p>ध्वनि, वर्णमाला से परे </p><p>भाव, जिनका नहीं कोई चित्र </p><p>रंग नहीं, बेरंग नहीं , न बोला न रहे चुप </p><p>मर गए, तुमको खबर नहीं। </p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-16734665413693131982021-02-05T15:49:00.002+05:302021-02-05T15:49:13.290+05:30भय की चौखटे हैं<div>उस पार है निर्जन। </div><div><br /></div><div>मेरी सत्त्ता से परे </div><div>तुम अकेले</div><div>तुम निर्बल</div><div>डांक नहीं सकते तुम मेरी सत्ता के द्वार </div><div>दिन भर तुम जयकार </div><div>रात करूँ मैं शिकार तुम्हारे विचलन का </div><div>स्वस्थ चिंतन का </div><div>स्वाधीन मनन का। </div><div><br /></div><div>तुम्हारी परिधि हूँ मैं </div><div>तुम मेरी छाया हो </div><div>हम साथ द्वन्द हैं </div><div>तुम मेरी माया हो। </div><div><br /></div><div>तुम्हारे हीन का, भय का, गर्व का मैं उत्पाद हूँ </div><div>तुम मेरे भक्त जन </div><div>मैं तेरा भगवान् हूँ। </div><div> </div><div><br /><div><br /></div></div>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-89367006050241653912021-02-04T22:46:00.003+05:302021-02-04T22:46:48.783+05:30 एक वह ज़िंदा है समय नहीं समतल<div>इन दिनों रोज़ ही,</div><div>भहरा के गिर जाती है कोई प्रतिमा </div><div>पूज्य कोई च्युत हो जाता है। </div><div><br /></div><div>जीवन और कुछ ठहर जाता है।</div><div><br /></div><div>2.</div><div>इन दिनों रोज़ ही </div><div>मर जाता है कोई चूहा </div><div>कुछ और तेज़ रोती है बिल्ली </div><div>भूके पेट सोते हैं बच्चे </div><div>बाप कर बैठा है अनसन .</div><div><br /></div><div>तमाम कस्बे की आखिरी ज़िद है </div><div>बच्चों की भूख . </div><div><br /></div><div>3.</div><div>एक की शान </div><div>उसके, बान की खातिर </div><div>नदियों में जहर भर, बादल को कैद कर </div><div>खेतों को कर लज्जित </div><div>चर रहे हम फसल साथ की, सामर्थ्य की, करुणा की, प्रेम की </div><div>प्रेम पर विश्वास की .</div><div><br /></div><div>एक वह ज़िंदा है </div><div>हम सब विजूका है.</div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-60738310917332239982021-01-30T22:33:00.003+05:302021-01-30T22:33:28.952+05:30रहने दो हमको अपनी ही फुर्सत में<p>1. </p><p>साधारण रह जाना,</p><p>परिचित बरामदों में रह जाना अनचिह्ना </p><p>साधारण बात है </p><p>और साधारण बातों की की तरह ही,</p><p>सहज। </p><p><br /></p><p>2. </p><p>चकाचौंध की रौशनी पराई है, </p><p>प्रसिद्धि की, सफलता की </p><p>और हम रह जाते चाँदनी की छाया में श्वेत वस्त्र भूतों से। </p><p>कृत्रिम निर्मितियों की के प्रेत द्वार </p><p>क्या ही ज़रूरी हैं। </p><p><br /></p><p>3. </p><p>पहाड़ में पहाड़ी से, मैदान में मैदानी </p><p>वंचित महत्त्व से, अर्थ की आभा से </p><p>रहने दो हमको </p><p>अपनी ही फुर्सत में। </p><p><br /></p><p><br /></p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-6753482701216357112021-01-27T16:59:00.009+05:302021-01-27T23:55:55.183+05:30<p>1. </p><p>कुछ भी नहीं था .</p><p>इक शिकायत रही, कभी कुछ न रहने की.</p><p>कुछ नहीं था, फिर </p><p> वह लगा छीनने,सब, </p><p>जो घुल मिल गए थे हममें</p><p>एक एक करके,</p><p>ख्वाब, आज़ादी, हक़ और बराबरी . </p><p><br /></p><p>2. </p><p>आश्चर्य के, फिर दैन्य के, गीत लिखे हमने </p><p>भरी फिर, विरोध की हुंकार। </p><p>अब बारी थी आवाज़ की, </p><p>आवाज़ छीने जाने की </p><p>हमारे शब्दों पर हमारे दृश्यों पर, हमारे चित्रों पर</p><p>कर गूंगा हमें,</p><p>उसके गीत गाये जाने की .</p><p><br /></p><p>3. </p><p>यह दिन थे जब हम मौन हुए </p><p>और साफ़, बिलकुल साफ़ गूंजने लगा उसका अट्ठास. </p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-57329958021533897462021-01-25T11:40:00.007+05:302021-01-27T17:35:14.465+05:30<p>1.</p><p>उदासी के उदास ख्यालों संग </p><p>ज़िन्दगी चुप गा रही होती है मौत की धीमी धुन </p><p>और जब, व्यर्थ बीत जाने का गीत लिख रहा होता है </p><p>मुझे </p><p>आ जाती हो,</p><p>तुम। </p><p><br /></p><p>2. </p><p>हर बार नई एक शाख पनपती है </p><p>रोशनी फैलती है आहिस्ता </p><p>तुम पसरती हो, मेरे होने में </p><p>हर बार, एक अकेलापन चला आता है </p><p>उजास ज़िन्दगी का, जम जाता है </p><p>शैल बर्फ बेरंगा, बस हासिल। </p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-86444844418045482782021-01-22T20:18:00.003+05:302021-01-22T20:18:17.187+05:30<p>1.</p><p>सन्नाटे का संगीत </p><p>कैनवास है ज़िन्दगी का </p><p>बैकग्रॉउंड में रहती है </p><p>निरंतर उदासी। </p><p><br /></p><p>2. </p><p>धुंध तह धुंध,</p><p>अंधेरों की तह </p><p>खिड़की के पास रुकी उदास रोशनी </p><p>ठिठकी सिमटी सिकुड़ी </p><p>खिन्न बैठी है ज़िन्दगी। </p><p><br /></p><p>3. </p><p>ठण्ड में अँधेरे कमरे का कोना </p><p>और मैं। </p><p><br /></p><p>बस इतनी ही कहानी। </p><p> </p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-29061280519995290822021-01-17T12:35:00.001+05:302021-01-17T12:35:11.404+05:30वह दिन भी आएगा<p> 1. </p><p>सुनाई देगी फिर आवाज़ </p><p>छिप गई है जो,</p><p>तर्क की, संवाद की, जन की, जनतंत्र की। </p><p><br /></p><p>२. </p><p>उम्मीद अच्छी चीज़ है </p><p>मानना कि, दिन है तो रात भी </p><p>उम्मीद रखना कि, बदलेगा वह या निज़ाम उसका। </p><p><br /></p><p>३. </p><p>समय की पांत में </p><p>वह दिन भी आएगा, नहीं होंगे वह </p><p>छल्लों पर छल्ले बनते जाएंगे और उनकी दी चोट भी न पहचान में आएगी। </p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-87982110019010774772021-01-09T21:27:00.004+05:302021-01-09T21:27:56.774+05:30<p> 1.</p><p>क़त्ल किया वक़्त का </p><p>फिर जिया, </p><p>शून्य में .</p><p><br /></p><p>2.</p><p>तुमसे परे, मुझसे परे आदि अंत से परे </p><p>शून्य में, </p><p>जिया फिर .</p><p><br /></p><p>3.</p><p>तुम घटे, हमसे</p><p>उपजा शून्य,</p><p>शून्य ही नियति अब . </p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-75227713736563014142021-01-07T14:43:00.002+05:302021-01-07T14:43:19.792+05:30<p> 1.</p><p>बीतते जा रहे हैं सामने से,</p><p>खेत दर खेत </p><p>खेत जो परती रह गए हैं </p><p>खेत जो सोना हो गए हैं </p><p>लग रही है लू </p><p>अब जबकि बसंत आने वाला है </p><p>दिख रहे हैं साल पिछले जो बीते निरंतर </p><p>दिख रहा है </p><p><br /></p><p>जी रहे थे जिसे वह भ्रम था. </p><p>बीत गए बीस वर्ष.</p><p><br /></p><p>2.</p><p>चुप चाप बदल गया साल </p><p>साल,</p><p>जिसे 2020 होना था.</p><p><br /></p><p>वैभव का, उत्थान का साल.</p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-73326524376362372742021-01-06T22:44:00.004+05:302021-01-06T22:44:43.212+05:30<p> 1.</p><p>भूगोल की किताब में लिखी हो शायद </p><p>उम्र </p><p>नदियों की </p><p>बहते झरनों की,</p><p>लिखा हो शायद </p><p>कौन युवा प्रौढ़ कौन, कौन मुग्धा.</p><p>समाज शास्त्र नहीं लिखता लेकिन </p><p>लड़कियाँ जी रही होतीं हर अवस्था .</p><p><br /></p><p>2.</p><p>खिले, अधखिले, अनखिले फूलों से </p><p>चिड़िया से </p><p>गंध से या स्वाद से </p><p>तुलना बेमानी है, </p><p>अर्थहीन हैं कविताएं. </p><p><br /></p><p>लड़कियों खुद उपमेय निज उपमान. </p><p><br /></p><p>3.</p><p>नदी, नदी है </p><p>लडकियां, लडकियां </p><p>नदी देख फिर भी याद आती हैं वह तमाम लडकियां </p><p>जिनके भूगोल की किताब तक सिमटा है </p><p>जीवन का अर्थशास्त्र.</p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-44151405705884317632021-01-05T22:51:00.002+05:302021-01-05T22:52:47.478+05:30<p> हांकता है मसीहा </p><p>भेड़िये भी </p><p>भेड़ भी </p><p>एक सीध में, झुके सर चलते जाते हैं </p><p>भेड़ भी, भेड़िये भी .</p><p><br /></p><p>प्रजातंत्र का रामराज्य है . </p><p><br /></p><p>2.</p><p>उदास आँखों देखते हैं </p><p>अँधा कुआँ, अथाह गहरा</p><p>और </p><p>हुआँ हुआँ करते हैं .</p><p><br /></p><p>हम वोटर, हम अनुचर, हम पब्लिक .</p><p><br /></p><p>3.</p><p>एक लम्बी नींद में है </p><p>तंत्र </p><p>हमारे ख्वाब उसक</p><p>हमारा काम पिसना, पिस रहें हैं हम .</p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2974147489967559667.post-81867022889801407672021-01-03T15:50:00.007+05:302021-01-03T16:35:19.931+05:30<p>१. </p><p>बेमुरौवत निकले ख्वाब </p><p>ख्वाब न आँखों से निकले </p><p>रहे गए ख्वाब आँखों में </p><p>न कोई और ठौर ठिकाना। </p><p>२. </p><p>वही दिन वही रात रहे। </p><p>दिन और रात, समय सिमटा </p><p> साल महीने हफ्ते बेमानी </p><p>वही दिन वही रात रहे </p><p>न बदला कुछ। </p><p>३. </p><p>नहीं पता, </p><p>क्या नया साल का मतलब। </p><p><br /></p><p> </p>RAJANIKANT MISHRAhttp://www.blogger.com/profile/05620515043834445894noreply@blogger.com0