1.
सुनाई देगी फिर आवाज़
छिप गई है जो,
तर्क की, संवाद की, जन की, जनतंत्र की।
२.
उम्मीद अच्छी चीज़ है
मानना कि, दिन है तो रात भी
उम्मीद रखना कि, बदलेगा वह या निज़ाम उसका।
३.
समय की पांत में
वह दिन भी आएगा, नहीं होंगे वह
छल्लों पर छल्ले बनते जाएंगे और उनकी दी चोट भी न पहचान में आएगी।
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