Sunday, September 19, 2021

भाषा

एक भाषा

क्या होगा उसका जो ढोती है केवल झूठ.

याद रखी जायेगी, एक विलुप्त झूठी नदी की तरह 

या 

बहती रहेगी, ढोती हुई लोकतंत्र का सच 

मसीहा की जयकार 

संस्थाओं की लाश।  

बहती रहेगी क्या तब भी जब आडम्बर नहीं होंगे 

नहीं होंगे पंचसाला चुनाव। 

जब झूठ नहीं होगा फ़र्क़ सच से,

क्या ज़रुरत होगी भाषा की।   

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