Sunday, August 2, 2020

तुम निबाह देती हो।

स्वीकार भाव में हिला देती हो सर,
कि नहीं कोई देव जो दिखता नहीं
और मन ही मन देव से मांग रही होती हो
सर्व शक्तिमानके नाराज़ न होने की मन्नत।
छिपा देती हो अखबार से काट
सहेजी नायक की कटिंग,
ख्वाब में अब भी जो मंडराता है।

सुन लेती हो मसीहा के लिए
तमाम कड़वे शब्द, 
मसीहा, जिसका होना ही है लोकतन्त्र।

तमाम किस्से हैं
तमाम बातें है
जिनसे निभा देती हो,
तुम
मोहब्बत मेरे लिए।

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