Friday, July 24, 2020

फरेब से उसके, तू निकल बाहर

कविता!
सुन, तू मत ढो, अपने कंधों पर उसे।
जो झूठ है,
मत गवाही दे उसकी
सपने झूठ के, शुभ नहीं।
छंद के अपने नियमों तले
मज़बूर नहीं तू ।
फरेब से उसके, तू निकल बाहर,
और मुझे भी खींच इस कूप से परे।
कविता !
साहस ले और लिख अपनी जगह जनता।।

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