Thursday, July 30, 2020

दिन का विलोप हुआ,
रात उदास हुई।
अंधेरे में,
मेरे गीतों को सुना, सराहा तुमने।
मन भर जाने से पहले,
छेड़ देता हूँ मैं नए स्वर
नया खेल दर खेल नया
नए नए नामों से खेल नया।

जगमगाते हैं लैम्प पोस्ट नारंगी,
स्टूडियो से छन
आती है तुम्हारे लिए जगमाती लहरें,
बरसात के कीड़ों सम
तुम्हे पसन्द हैं मेरे लैम्प पोस्ट।
अच्छा लगता है मुझे, तेरा बहल जाना।

रात कुछ और उदास हो जब,
मैं रचता हूँ खेल कोई
तुम्हारे लिए, प्रिय जनता।
मैं मसीहा हूँ, अंधेरी उदास रातों का।

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