३.
तुम बुनते रहे
सीख सीना
सिलें हैं मैंने
कई कोने !
समय को बना
गठ्ठर-सा
घुमती हूँ मै
पीठ पर लादे
तुम बुनते रहे
समय के धागे
स्वीटर-सा
सीने से चिपका
तुमने पहन रखा है समय.
किसी घूरे पर फेंक
समय गठरी
मैं हो जाऊं हल्का
बदले मौसम में
तुम सहते रहो
समय की तपिश
तुम बुनते रहे
सीख सीना
सिलें हैं मैंने
कई कोने !
समय को बना
गठ्ठर-सा
घुमती हूँ मै
पीठ पर लादे
तुम बुनते रहे
समय के धागे
स्वीटर-सा
सीने से चिपका
तुमने पहन रखा है समय.
किसी घूरे पर फेंक
समय गठरी
मैं हो जाऊं हल्का
बदले मौसम में
तुम सहते रहो
समय की तपिश
No comments:
Post a Comment