Wednesday, May 18, 2011

फिर उदास खुद को पाया हमने

देर तक
पौध हिलती रही
चाँद बड़ा होकर निकला
देर तक हवाओं को
दुलराया हमने

अल्लसुबह आज नींद तोड़ी हमने
तड़के फिर  खुद को भरमाया!

उदासी
सूर्य किरणों सी
छन छन के बही !
रौशनी लायी खालीपन फिर से
फिर उदास खुद को पाया हमने

3 comments:

  1. mujhe aisa lagta hai ki result ki khushi mein aapa kavita lekhan kuchh badh gaya hai aur din par din aur behtar bhi hota jaa rahaa hai..

    bahut sundar likha hai..hope to read more beautiful poems by u bt wid positive approach..

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  3. a nice poem.
    keep it up.

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