१.
जेल,
सबसे बड़ी
ख्वाब अनसुलझे ,
बाँध रखा है
मरने भी नहीं देते.
२.
मरीज़ मेरा
न कहे में
मेरे
रोग
पालता है रोज़
नए,
ख्वाब देखता है,
अनसुलझे.
१. पूछो राम कब करेगा यह कुछ काम । २. कर दे सबको रामम राम सत्य हो जाए राम का नाम उसके पहले बोलो इसको कर दे यह कुछ काम का काम । ३. इतना ...
achha hai par thoda aur vistaar apekshit hai...kuchh chhhoot gaya ..
ReplyDeleteछूट गया है
ReplyDeleteबहुत कुछ अब तो
पकड़ पाता नहीं
कविता, तुझसे
रह जाता हूँ
अधुरा
हरदम.
छोटी कविताएँ बड़ी गहराई लिए होती हैं. ऐसी व्यथा कथा लिए जो दिखती नहीं है महसूस भर होती है. और रजनीकांत जी के प्रयास अच्छे लगे. विस्तार की अपेक्षा करना कवि के साथ अन्याय करना है. बस सावधानी से कदम दर कदम बढते जाएँ. शुभकामनाएँ .
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया डाक्टर वत्सला .........
ReplyDeleteजन्माष्टमी की शुभ कामनाएँ।
ReplyDeleteकल 23/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत बहुत धन्यवाद... आपका आभार...
ReplyDeletebhaut hi acchi hai rachna.. ansuljhe khwabo ki...
ReplyDeleteअनसुलझे ख्वाबो की सुन्दर रचना.....
ReplyDelete@ सागर एवं सुषमा ....... आप दोनों का बहुत बहुत आभार .......
ReplyDeleteसंगीता जी .......... आपका बहुत बहुत आभार.....
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