Thursday, July 14, 2011

एक अरसा हुआ, नींद नहीं आई मुझको .

दिन, 
ख़ुदकुशी कर लेता है
रात ढलती नहीं 
उजाला नहीं होता,

तमाम तह 
बिछा 
संजोये अपने टुकड़े
ज़िन्दगी
क़त्ल रोज़ करती रही 

खौफ  
स्याप अंधेरों में नहीं सोने देता  

एक अरसा हुआ,
नींद नहीं आई 
मुझको . 

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