Monday, July 4, 2011

कब्र की पनाह/ तुम

क्षितिज , आसमां, धरती 
सब कठोर 
सब छाया 
अतीत के,

पीता हूँ साँसे 
खाता हूँ जिंदगी
कुरेदता हूँ 
सपनों की कतार
चबा रहा हूँ 
खुद को

सबको ढके सबको तोपे
एक आवाज़ 
एक छाया 

कोई नहीं यहाँ
कब्र की पनाह 
तुम   

2 comments:

  1. bas bhi karo yAR
    AB KUCH MITHA SA LIKHO

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  2. ab kuchh mitha ho jaye...............delhi aao choklate khate hai..............

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