ढूंढ़ ढूंढ़ कर
इकठ्ठा किया सारी तसवीरें जेहन में जो भी,
तसवीरें जिनमें तुम थी
मै साथ साथ ही था
कोई तस्वीर तुम्हारी
मेरे बगैर,
मेरे जेहन में नहीं,
तमाम तस्वीरों की
कतरन की,
खुद को काट
अलग किया तुमसे,
मन ने जब खिंची होंगी तसवीरें,
उन पलों को जिया फिर से.
याद नहीं
तारीफ़ कभी की या नहीं
अनुमान लगता हूँ
निहारा होगा तुम्हे
भले चुपके,
तुम्हारे
केश, नासिका या भौहें
कुछ तो हर बार भले लगे होंगे .
आज जब तस्वीरों को काटा
हर फ्रेम से अलग किया खुदको
चंद तसवीरें जो थी जेहन
हो गयी भद्दी,
मेरे बगैर
कितनी बदसूरत हो तुम,
घूरती
खाली जगह, जिसे मैं भरता था कभी
खा जाने वाली चुड़ैल नज़रों से,
मेरे बगैर
उन्ही तस्वीरों में
असली सी
चुड़ैल दिखती हो तुम .
उम्मीद है
तुम जो देखो
उन तस्वीरों से कटी मेरी कतरन
तुम्हे लगे
कैसे अजीब प्राणी से कर सकी तुम बात
मुमकिन है
खून पीता राक्षस
या भेड़िया
नज़र मैं आऊं.
गनीमत है
हमें कहना नहीं आता
न तुम्हे न मुझे
पहले
न मैंने कहा तुम जीवन सी लगती
न तुमने, मैं आधार बन सकता हूँ
गनीमत है
हम अब भी जाहिर न करेंगे
खुद को
कोई न जानेगा
चुड़ैल तुम या मै राक्षस .
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