बाज़ी हममें,
स्मरण नहीं
कबसे चलती हुई
मेरा दांव भी
मेरा जीवन
मेरा जीवन
तुमने रखा है दांव,
स्मरण नहीं,
कबसे चलती हुई बाज़ी हममें .
रात जलती हुई-सुलगती हुई
धुआं धुंआ रहता है दिन .
कुंद सिरे नाखून
टूटे पंख घिसे दांत
बुझे बुझे बोझिल डैने
कुरेद कुरेद खोद नोंच
खुद को,
याद से खुद को
भूत से खुद को,
स्मरण नहीं द्वन्द कबसे चलता हुआ
स्मरण नहीं बाज़ी कबसे चलती हुई,
मेरा दांव मेरा जीवन
मेरे जीवन पर ही दांव तेरा
स्मरण नहीं कबसे मैं जलता हुआ....
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