मसल कर देखा
कुरेदता रहा चमड़ी
नाख़ून उखाड़े
फिर
सड़क पर सर दे मारा
हर कोशिस की
पुरजोर जार रोने की
मुंबई
मुझको रो लेने देती
एक हिजड़ा क्रोध
लंगड़ी हिंसा
लहू में बहती रही
धुआं धुआं रोष पी
मैनें
फिर आज मज़े में रोटी खाई..
मुंबई
माफ़ करना
मेरी कायरता को...
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