सफ़ेद
झक्क सफ़ेद खादी सी
जिंदगी,
बुन रहा था,
समतल पठार सा
सफेदी में सदा रंगा.
ध्यान भटका
धोखा निगाहों को
रंगीन
रेशम उलझ गया हाथ
रिश्ता बुनना चाहा मैंने .
सतर टूट गयी
लय टुटा
रुक गया बुनना
थम गया जीवन .
तुमने कहा
बांध
आगे बढ़ो
टूट जाए जो
जोड़ लो उसको
छिपा गाँठ
मन के कोने
टूटे रिश्तों को कर लो अपना
बाँध कर देखा,
एक ही गाँठ
छिप न पायी
मेरे चादर,
एक टुटा हुआ रिश्ता
न निभा मुझसे
खोल देता हूँ
गाँठ
मन पे पड़ी
जोड़ता नहीं टुटा धागा
छोड़ देता हूँ बुनना
ज़िन्दगी ठहरी है
टूटे धागे पर.
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