Wednesday, June 29, 2011

शाम ढलते ढलते..

शाम ढलते ढलते 
चाँद पिघल जाता है .

हर रोज़,
कोट में अपने 
अकेला छोड़ जाता हूँ 

चाँद को,पिघल जाने को
दिल को,जल जाने को .

शाम ढलते ढलते
धरती कुछ और उदास हो जाती है . 

4 comments:

  1. kabhi fir se guzarte waqt kosis karunga...
    thank you so much..

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  2. बहुत सुन्दर है... बहुत ही सुन्दर...

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  3. बहुत सुन्दर है... बहुत ही सुन्दर...

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