Thursday, June 16, 2011

नई भाषा 
जिसे समझते हम केवल
नए गीत 
जिसे गाते हम केवल

हम देखते चार आँखों से
दो आँखों में तैरता 
मेरा बचपन 
दो आँखों में
रंगोली तेरी

नई गिनती 
जो नापती देह तेरी
नए चिह्न 
पहुँचाने को मेरे ख्वाबों तक

मैं जानता था 
मर जाओगी तुम इक दिन 
कुछ भी नया नहीं हुआ
तुम नहीं बची जिन्दा 

टूटे ख्वाब पर 
नहीं आया रोना मुझको.



2 comments:

  1. mere khayaal se kavita ka second last parra shesh kavita se alag lag rahaa hai..uska taartamy nahi baith rahaa.. baki panktiyon ke sath..

    aap agar iss kavita ka bkgrnd..I mean if anyhting specific was in yr mind while writing this poem thn describe tht also..so it wud be easier for a reader to understand what exactly do u want to say...

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  2. fir se likhu to sayad koi connecting link de pau...
    fir kabhi is kavita ko fir se likhna chahunga
    thanks.......

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