जब कभी
बच के निकलती
तुम
छतरी ताने
बचते हुए बर्फ वा बारिश से
तुम पर उड़ेल देता
कर बादल उल्टा,
बंद मट्ठी में लाता
चुटकी बर्फ तुम्हे चखने को
तुम नाराज़ होती
मै जानता
दिखावा है नाराज़ होना..
तप्त मन को पड़े फफोले
हुई बारिश जब जम कर
मन और तपा
मैं और जला
टूटे ख्वाब पर नहीं आया रोना मुझको..
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