रक्त जल,
बने कालिख
तब
बंद हो शायद
सुलग जलना आत्मा का ?
भष्म
सब स्वप्न कर
आहुति दी
संकल्पों की ;
फिर भी
धुआं धुआं
सा जलता क्यों है .
क्या
सचमुच है
कोई इश्वर,
लेता हुआ बदला .
धुआं धुआं
बन
छोड़ रही है,
आत्मा
मेरा संग
एक दिन आएगा
धुआं
ख़त्म हो जायेगा धुंए की तरह
साथ में मेरा मैं.
good one....infact very impressive...
ReplyDeletethank you so much.......
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