मैं अब भी हूँ
बड़ा विशेषज्ञ,
मनोभावों का,
दुःख का ,
कष्ट का ,
पीड़ा का.
अब भी मैं
देख लेता हूँ
मृत्यु छाया,
निराशा के गर्त में पड़े हुओं की दशा ,
एक प्रेम से विचलित की दूसरी दौड़,
एक साथ कई को बाँध रखने की ललक .
अब भी मेरे पास इलाज है
इन सबका
जिन्हें अपना नहीं पाता
मैं खुद के लिए..
dada ek dukan khol lo bahuton ko aapki salaah ki zarurat hai...... ishq e kaun ghayal nahi........
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