क्या कुछ
कितना कुछ है
मेरा.
ये आदमी,
मेरी किस्मत बारह पंजों से नोचता
शफ्फाक मेरे आईने से झांकता है मुझे,
ये औरत ,
तमाम मर्दों की तह में रख नीचा
अस्तित्व की नोंक से खरोंचती है मुझे,
क्या कुछ
कितना कुछ है
मेरा
रक्त मेरा,
खौलता रहा - भाप बन उड़ता रहा
सराबोर तिक्त स्याह से करता है मुझे,
उन्छुआ ख्वाब ,
तमाम उम्र करता रहा पहरेदारी,
जल धू धू एकाकी कर गया है मुझे,
क्या कुछ
कितना कुछ है
मेरा
मेरा मैं , मेरी औरत,रक्त, ख्वाब मेरे
कुछ भी
क्या है मेरा.......
bhayanak ko bahut dino bad ras ke rup me kavita me mahsus kiya hai.
ReplyDeletebhutha kavita ki nai vidha khoj rahe ho tum.
bahut khub
ReplyDeletetab to nayi nayi khoj par badhai bhi de do.