तुम धरा हो
मेह के नेह से भीगे
तुम्हारे अंतर में
हलचल है नुकीले हल की भी
तुमसे पनपी है यह बाजरे की फसल !
मै नहीं था लायक
जान पाता सच
जान पता/ बीज भर नहीं है अवयव
सृज़न को चाहिए तुम्हे
बीज के साथ हल ओ जल भी !
तुम धरा हो
मै नहीं था लायक
जान पाता सच....
Beautiful.
ReplyDeletethank you so much sir
ReplyDeletethis is simply beautiful and outstanding
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