Monday, April 25, 2011

अपनी कब्र में
माटी दे आया तो मै
न जाने फातिहा फिर भी नहीं पढता क्यों  हु .........

देखा तो था
धीरे धीरे मरना अपना
सोचना मेरा/ सांस आगामी दे दे जीवन
मुलाक़ात अगली रोक दे दम घुटना
देखा तो था अपनी सोच का गलत होते जाना
 न जाने फातिहा फिर भी नहीं पढता क्यों हु..........

मेरा विदा हो जाना खुद मुझसे
मेरी नियति में
देखना अपना कत्ल
छीज जाना सारा शुभ सत्व सारा
न जाने फातिहा फिर भी नहीं पढता क्यों हु............

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