सुलग सुलग कर जलना
जलते रहना और सुलगना
कितना कठिन है
कितना मुश्किल
मनोवेग की आंधी आकर
लप लप दे चिता अग्नि को
निजात्म का जलना अनवर
धुन्धुआना निज/धीरे धीरे
कितना कठिन है
कितना मुश्किल
प्रखर वह्नी धमनी से परे
धरे रूप विकल अग्नि की
आतुर
भष्म करे भूत को
तुम तक पहुचे न तूफान यह
कितना कठिन है
कितना मुश्किल
जलकर खत्म/ यही नियति है
फिर भी सुलगना धीरे धीरे
कितना कठिन है
कितना मुश्किल
जलते रहना और सुलगना
कितना कठिन है
कितना मुश्किल
मनोवेग की आंधी आकर
लप लप दे चिता अग्नि को
निजात्म का जलना अनवर
धुन्धुआना निज/धीरे धीरे
कितना कठिन है
कितना मुश्किल
प्रखर वह्नी धमनी से परे
धरे रूप विकल अग्नि की
आतुर
भष्म करे भूत को
तुम तक पहुचे न तूफान यह
कितना कठिन है
कितना मुश्किल
जलकर खत्म/ यही नियति है
फिर भी सुलगना धीरे धीरे
कितना कठिन है
कितना मुश्किल
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