कहा मैंने
बाँध के नहीं रख सकते मुझे
बँध के नहीं रहना मुझे.
युधिष्ठिर मैंने तो नहीं बाँधा तुम्हे
कृष्ण रहे सदा ही मेरे साथ
मेरे सखा, मेरे प्रिय की छाया
कृष्णा हूँ मै कृष्ण के ही नाते
पंचतत्व / पञ्च पतित्व
आधार है मेरे जीवन के
अलग अलग नहीं
एक साथ
बाँध नहीं सकते तुम
समय पर धर्म-रेखा
जी सकते हो भला
प्रथम वर्ष केवल जल पर
अगले साल केवल वायु
नाम दिया है तुमने
हक तुम्हारा भी है
मैंने माना ही सदा
दी तुमको इज्ज़त इस नाम की खातिर
नाम ही तो सब कुछ नहीं 'युधि'
तुम छिपा ले जाते हो
नपुंसत्व अपने सत्याचरण के सहारे
तुम्हारा सत्य नहीं देता मुझे संबल
तुम्हारा हो जीवनाधार !
तुम्हारे जीवनाधार से नहीं बाँध सकती मै अपनी नाव
तुम देते हो मुझे नाम
नाम से प्रिय है मुझे मेरा मै
तुम धर्मावतार हो
मै अग्निकन्या युधि
मेरी जीवनाग्नी को चाहिए
एकाधिक अर्जुन
बेध सके मुझको
बाँध ले मेरा प्रवाह
मेरे स्नेह को चाहिए पात्र नकुल/सहदेव का
तुम्हे प्रिय है सत्य तो सुनो युधि
कर्ण है मेरा प्रतिजीवन
अर्जुन और कर्ण
इन्ही के बीच हो सकता है बंटवारा
अर्जुन ने पा ली है मेरी देह
अर्जुन प्राप्य है मेरा
कर्ण प्रेय रहा है सदा
अगठित,कठिन कर्ण है/आकर्षण की धुरी
पुरुष रूप में प्रिय है मुझे कर्ण
सदा से/ अब भी
भोग मुझे अर्जुन
बांधता है मेरी देह
प्रिय है मुझे
कर्ण उन्मुक्त करता है मेरी आत्मा
झोंकता है मेरी अग्नि में
दे अपनी आहुति
कहा मैंने युधिष्ठिर
बँध के नहीं रह सकती मै
मेरी औरत को चाहिए
कर्ण, कृष्ण, अर्जुन,अन्य पुरुष
और तुम भी.
नाम चाहिए मुझे भी
पर यह त्रेता नहीं युधि
बंटवारा नहीं मुझे मंज़ूर
समयबद्ध अपने भोग का
मै पूर्ण हूँ
सब साथ हो जीवन में तभी.
अपूर्ण नियति हो मेरी
तब नाम छिन जाने दो
न रहो तुम मेरे जीवन में
पुरुष के नाम के बिना भी
रहेगा मेरा अस्तित्व
मेरे पूर्णत्व को चाहिए
कृष्ण, अर्जुन, कर्ण और अन्य पुरुष
कहा मैंने
बँध के नहीं रह सकती मै युधिष्ठिर
चाहो तो निकल जाओ
मेरी परिधि के बाहर
Very Impressive...I dnt hv exact words..bt this is really smthing "leek se hatkar"...
ReplyDeleteand yes ofcourse..bhasha iss baar jyada kathin nahi hai..
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletethank you so much...
ReplyDeletethis subject has been troubling me for some time.....troubles still....i think will come again to this topic in future..
do u kno any vedprakash mishra????????who is from allabad studies at allhabad university.........ur scrap is locked otherwise i asked there..........both of u look quite similar
ReplyDelete@anonymous sorry
ReplyDeletecant recleect by the name. it has been almost six years since i left allahabad university.
mujhe lagta hai mahabharat fir se padhna padega is kavita ko samajhane ke liye.....
ReplyDeletedifferent poem....