जानना चाहता नहीं,
कई सवाल
उठते, गिरते
गिराते उठाते मुझको.
जानना चाहता नहीं,
मेरे शब्द, आवाज़; मेरे लिए या खिलाफ मेरे
यादें,
वजूद पर भारी; प्रत्याशा में गढ़ी यादें
जानना चाहता नहीं,
वजूद या गढ़ी यादों में ज़रूरी क्या है....
कई सवाल
उठते, गिरते
गिराते उठाते मुझको.
जानना चाहता नहीं,
मेरे शब्द, आवाज़; मेरे लिए या खिलाफ मेरे
यादें,
वजूद पर भारी; प्रत्याशा में गढ़ी यादें
जानना चाहता नहीं,
वजूद या गढ़ी यादों में ज़रूरी क्या है....
चंद पंक्तिया और बेहतरीन अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteमेरे विचार से....
ReplyDeleteयादें गढ़ी नहीं जा सकतीं।
जानना असंभव है कि यादों में और वजूद में कौन जरूरी है।
बहुत सुन्दर...
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