१.
तमाम बातों का,
एकाध सिरा
कभी कभी पकड़ आता..........
समझ आता
अजनबी मैं कितना /
रहने और जीने के तमाम नुस्खे.......
सुनता, जब जब
उदासी पैठती, रह रह
होता जाता हूँ कुछ और अकेला......
२.
कोना,
सावंली छाया का,
छू गयी मुझको.
दाग मैं लिए फिरता .
अँधेरी रात
अँधेरा काला
ये दुनिया रहती जिसमे
सह नहीं पाती मुझको.
नहीं चाहिए रौशनी इसको,
मुझे बर्दास्त नहीं, दाग मेरा.....
३.
किसी के रूकने तक,
मेरे लिए:
मैं नज़र आता नहीं,
मैं नज़र नहीं आता
रुकता नहीं, कोई,
मेरे लिए !!!!!!
तमाम बातों का,
एकाध सिरा
कभी कभी पकड़ आता..........
समझ आता
अजनबी मैं कितना /
रहने और जीने के तमाम नुस्खे.......
सुनता, जब जब
उदासी पैठती, रह रह
होता जाता हूँ कुछ और अकेला......
२.
कोना,
सावंली छाया का,
छू गयी मुझको.
दाग मैं लिए फिरता .
अँधेरी रात
अँधेरा काला
ये दुनिया रहती जिसमे
सह नहीं पाती मुझको.
नहीं चाहिए रौशनी इसको,
मुझे बर्दास्त नहीं, दाग मेरा.....
३.
किसी के रूकने तक,
मेरे लिए:
मैं नज़र आता नहीं,
मैं नज़र नहीं आता
रुकता नहीं, कोई,
मेरे लिए !!!!!!
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeletemain nazar aata nahin..aajkal lagta hai aap selfinspection mein lage hain..
ReplyDeletesushma......... many thanks,
ReplyDeletebhavana........ time kaat raha hu kisi tarah... sote sote jo bhi likh jaye.....
उम्दा लेखन, उम्दा चिंतन
ReplyDeleteधीर, गंभीर औ शांत,
गुण औ प्रातिभा मिलती जिसमे,
वो नाम है 'रजनीकांत'...