१.
दीवाल सा कुछ,
भरभरा,निरंतर रोके हुए!
खुद सपने अपने
ले ले भागूं जब.
टूट रहे भ्रम मेरे
याकि,
सपनो में दगा, ख्वाब देते जाते......
२.
मन के किनारों पर
अक्सर,
दुःख के सीपी चुनते
हंसी की चंद फुहारें
मोती बन लुप्त होते
ख्वाब मेरे अपने,
सहते नहीं मनमानी मेरी..
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