Monday, October 24, 2011

गाँव.................... village visit..86th F.C.


झांक, 
ट्रेन की खिड़की,
खेत समतल
हरियाली कहीं बिखरी,
नंग धडंग बच्चे,
धुल से बीन कंकर
फेंकते,
हँसते, मुस्काते, टाटा बाय बाय  करते,
.........................................................
........................................................
    गाँव रोमांटिक है,
    ट्रेन की खिड़की से.

२.

आओ,
पधारो !

माई बाप आप हो,

पढ़ी होंगी, 
किताबें हज़ार, हमारे बारे में.
लिख दोगे 
किताबें हज़ार, हमारे बारे में.

महाराज हैं
आप सभी लोग
आओ 
पधारो!

खँडहर हम,
बिखेर जाओ थोड़ी जूठन,
आखिरी बार आना है 
माई बाप, किसी गाँव आपका.

6 comments:

  1. bahut sateek baat kahi hai aapne..ham padhe likhe Sabhya logon k liye gaaon kisi ajoobe se ya adventure se kam nahin hota..aur sach poochhiye toh gaon walon k liye ham log kisi ajab namoone se kam nahin...gaon mein patwari tahseeldaar, BDO ya SDM yahi hai "RAAJ" ki pahchaan..

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  2. बहुत बहुत खुबसूरत भावांजलि...
    यथार्थ से ओत-प्रोत और हकीकत के धरातल पर बनी एक उम्दा रचना ,एक बेहतरीन कविता...
    **************
    "गाँव रोमांटिक है
    ट्रेन की खिड़की से मगर...
    हकीकत के कागज पर
    तस्वीर कुछ अलग ही है...
    पधारो, आओ..."
    आओ खींचो तस्वीरें,
    लिखो खुद के अल्फाजों को...
    मेरी नियति है बस
    गाँव हूँ मैं तुम्हारा शहर नहीं...
    पिछड़ा हूँ पर मरा नहीं,
    तुम्हारी तरह..."
    **************************

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  3. बहुत ही सुन्दर... शुभ दिवाली...

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  4. भावना, मनीष, सुषमा ........ बहुत बहुत धन्यवाद ...... दिवाली की ढेरों शुभकामनाएं.

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  5. गांव के दूसरे दृश्य में जबरदस्त व्यंग्य है। बहुत अच्छी लगी यह कविता।मेरे विचार से अंतिम दो पंक्तियाँ...

    आखिरी बार आना है
    माई बाप, किसी गाँव आपका.
    (किसी के गाँव आपको... होता तो भी...)
    ..खटक रही हैं। इनके बिना कविता और भी मारक हो जाती।
    ..मुझे नहीं मालूम था कि आप इतना अच्छा लिखते हैं। देर से जानने का अफसोस।...शुभकामनाएं।

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  6. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...!
    मेरे ब्लॉग पे आपका हार्दिक स्वागत ..!

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