१.
भ्रम है
रक्त लाल है, गाढ़ा या पतला।
लाल जब आपकी बारी हो
हालत पतली, तो पीला।
बारी बारी सफ़ेद काला खून, बहुरूपिया।
२.
यूँ तो
वर्षारंभ या अन्य दिन कुछ नहीं, दिन होने के सिवा।
पर इंतज़ार रहता है
वर्षांत का।
इसी इंतज़ार में इज़ाज़त है, वर्ष भर खुद को घसीटने की।
३.
बचा नहीं
बचपन न बचा यौवन।
देह औ मन का ताप हुआ ठंडा
फिर भी
मन गिनता है, अघटित भी ज़िन्दगी।
भ्रम है
रक्त लाल है, गाढ़ा या पतला।
लाल जब आपकी बारी हो
हालत पतली, तो पीला।
बारी बारी सफ़ेद काला खून, बहुरूपिया।
२.
यूँ तो
वर्षारंभ या अन्य दिन कुछ नहीं, दिन होने के सिवा।
पर इंतज़ार रहता है
वर्षांत का।
इसी इंतज़ार में इज़ाज़त है, वर्ष भर खुद को घसीटने की।
३.
बचा नहीं
बचपन न बचा यौवन।
देह औ मन का ताप हुआ ठंडा
फिर भी
मन गिनता है, अघटित भी ज़िन्दगी।
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