१.
अंदाज़े से परे
मेरा ही मन लगा रहा होता है, एक और अंदाज़ा।
मुझे पता होता है
जब गलत होते हैं, सभी दांव मेरे।
२.
पता चले तुम्हे
पूर्व इसके, बदल लेता हूँ मैं अपना चोला।
पढ़ते रहते तुम चेहरा
जब तुम्हारे अंतरतम, पलते हैं सपने मेरे।
३.
क्या खूब आसान
मेरी चाहत की बस्ती, बिना मोड़, विराम बिना।
योजनाओं की जद में
खुद केंद्रित, सायास घाव करते, घात मेरे।
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