१
जबकि पता है मुझे
शब्द से बेहतर, न जगह कोई, आशा हेतु
निज मन पाल रखा हूँ।
साथ मेरे, बुझती जाती हैं आशाएं।
२.
जबकि पता है मुझे
दिन है उजाला, बिन रोशनी का वक़्त, रात
उदास मापांक से नापता मैं, वक़्त।
वक़्त के बस दो चहरे, उदास या गुलज़ार।
३.
जबकि पता है मुझे
शक्ल साम्य होना अचरज नहीं, इन दिनों
एक ही साँचा गढ़े तमाम लोग।
मेरे चहरे पर न चढ़ा कोई और चेहरा।
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