ख़याल कई,
नहीं बांटे ॥
बताया तो था, तुमको
भोर की ओस, छूने की कशिश,
चाहत मोर पंखों की,
ख्वाब, नीले धुनों पर थिरकन ॥
नहीं बताया कभी
डर, झांकते कुँए में गिरने का
भय, चलती ट्रेन से कूद जाने का
दुह्स्वप्न आत्महत्या का
तुमने भी तो छिपाया, मुझसे
जो न, बांटो
घट जाता है ॥
बहुत सुंदर। मैने ऐसे पढ़ा...
ReplyDeleteख़याल कई,
नहीं बांटे ॥
बताया तो था तुमको
भोर की ओस छूने की कशिश,
चाहत मोर पंखों की,
ख्वाब, नीले धुनों पर थिरकन ॥
नहीं बताया कभी
डर, झांकते कुँए में गिरने का
भय, चलती ट्रेन से कूद जाने का
दुह्स्वप्न, आत्महत्या का ॥
तुमने भी तो छिपाया,
मुझसे
जो न बांटो
घट जाता है ॥