बुनता रहा मैं
गीत ।
मेरे अनजान
ही,
चखते रहे
मुझको
गीत मेरे ।
चीरा मुझको
मुझी से, पेट भरा
रक्तस्नान कर
शुद्ध हुए
गीते मेरे ।
उन्ही शब्दों ने जिया मुझको
जिनकी चौखट
आसरा थी मेरी ।
प्रेम
निर्लज्ज
घृणा
लज्जा ।
तार तार
खुली, बुनाई
मेरी ॥
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