Monday, May 16, 2011

समय पर तीन कवितायेँ और...

३.

तुम बुनते रहे

सीख सीना
सिलें हैं मैंने
कई कोने !
समय को बना
गठ्ठर-सा
घुमती हूँ मै
पीठ  पर लादे

तुम बुनते रहे
समय के धागे
स्वीटर-सा
सीने से चिपका
तुमने पहन रखा है समय.

किसी घूरे पर फेंक
समय गठरी
मैं हो जाऊं हल्का
बदले मौसम में
तुम सहते रहो
समय की तपिश

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