१.
हाथ न आया फिर भी छूटा,
बारी बारी भीतर भीतर
जाने कितनी बार मैं टूटा .
तुमको कोसा, खुद से रूठा
ज़िन्दगी बहुत बेहूदा हो तुम.......
२.
तुम्हे याद करते
काँटों का जंगल
उगने लगता है गर्दन पर
नाखून के पोरों से
उगते हैं कुदाल
चीरता रहता हूँ
मैं रूह अपनी
याद आती है
बेतरह यूँ भी
बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteआभार आपका..aapne samay nikala ...... bahut bahut shukriya
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा लिखा है भैया जी,
ReplyDeleteखुबसूरत, बहुत ही गहरे एहसास की अभिव्यक्ति.
"तुम्हारी याद
...आई तो
चुभन बनकर,
...गयी तो
घुटन बनकर...
चीरता हूँ रूह को,
पीर कम करने के लिए...
कितनी पेचिदां है ज़िन्दगी ..."
sundar rachna....
ReplyDelete@ manish....भाई आपने तो सुधार कर और ही उम्दा कर दिया है........... बहुत शुक्रिया .....
ReplyDelete@ saagar.....सर जी आपका बहुत आभार ........
प्रेरणा आप से ही पायी है...
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