१.
इक दिन
जब सुबह की लाली
भूख से भयाक्रांत न हो
सपनों में आना तुम
जब हो स्वप्न भयमुक्त.
२
.
इक दिन
जब हमारी हंसी
मुंह न बिराये
क्रंदन फैला चारो ओर
न स्वागते हमारी खुशी
हम तुम खुश होंगे सदा को.
ख़ुशी जब महके फिजा में
हम बांधेगे निज सुख की गठरी.
इक दिन
जब सुबह की लाली
भूख से भयाक्रांत न हो
जबनींदआएगीनिश्चिंत तुम्हेआमंत्रित करूँगा
ख्वाब में .सपनों में आना तुम
जब हो स्वप्न भयमुक्त.
२
.
इक दिन
जब हमारी हंसी
मुंह न बिराये
क्रंदन फैला चारो ओर
न स्वागते हमारी खुशी
हम तुम खुश होंगे सदा को.
ख़ुशी जब महके फिजा में
हम बांधेगे निज सुख की गठरी.
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