1.
मन चाहता है
नीँद, भर रात
ख्वाब मेँ तुम ।
मन चाहता है
दिन भर, तुम केवल ॥
2.
मन चाहता है
इन्द्रधनुष
चमक का, तेरी
रंग ओ गंध, तेरे होने के
मन चाहता है
इर्द-गिर्द तेरे, मैँ लट्टू ॥
3.
मन चाहता है
ओरहीन नभ, उड़ान का मेरे
जा जुड़े, छोर से तेरे
मन चाहता है
उड़ू मैँ, लट तेरी ॥
वाह... बहुत ही बेहतरीन
ReplyDeleteअंतिम बंद बहुत ही रोचक है...
"ओरहीन नभ" ये शब्द मैंने अपने साहित्यिक सफ़र में पहली बार पढ़ा है. अनुपम कृति...
सप्रेम अभिनन्दन...
कोमल भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteकोमल भावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeletedesires unlimited!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteV@ manish सुषमा ..... बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDelete@ bhavana ...... limited desire ka karna bhi kya.......
बहुत सुन्दर सृजन, आभार.
ReplyDeleteकृपया मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .
बहुत आभार
Delete