Thursday, April 21, 2011

मुक्ति के लिए सदा ही शुक्रगुजार तेरा..........

लगता था मुझे डर
ख़ुशी के भाव में डूबते उतराते
डर लगता था मुझे
एक दिन आएगा दुःख उमड़ कर

दुःख उमड़ कर आएगा और सराबोर कर देगा  मुझे
दुःख का पहाड़  बढता जायेगा
बौना कर देगा मुझे.....

डर लगता था मुझे.
दुःख बादल सा ले उड़ेगा
दुःख ही धरती सा बरतेगा
अँधेरे सा नींद में उतर आएगा
दुःख दिन की रौशनी सा दमकेगा

सुख के समभाव के प्रतिलोम सा
दुःख की गठरी से डरता था मै हरदम .

आज जब सुख हो गया है अनुपस्थित
दुःख घटती  किसी घटना की तरह नज़र नहीं आता
पहाड़ सा दुःख नहीं दीखता
न दुःख के पहाड़ का बौना करते जाना मुझको
दुःख के बादलो का छाना
दुःख के समंदर में डूबते जाना

दुःख किसी घटना की तरह नहीं घटता .........


दुःख हो गया जीवन
दुःख की सांस परे दम घुट जायेगा
दुःख आज मुझसे परे कुछ भी तो नहीं
एकमेव है मै और दुःख

डर लगता था मुझे दुःख के बोझ तले दब जाने का
डर वाजिब न हुआ....
डर से मुक्ति मिल गयी है मुझे
मुक्ति के लिए सदा ही शुक्रगुजार तेरा



3 comments:

  1. ACHCHA LAGTA HAI TUMHE PADHKE
    JAISE DEKHTA HUN AKS APNNA
    BAHHTE JHRNE MENI
    TUT TA HAI JIN GHATIYON MEIN
    MERA BASANT
    UNHI PER TUM MADRATE BARSTE HO
    BAN MERE HI AANSU
    MUJHE HI BHIGOTE HO
    ACHCHA LLAGTA HAI
    KHUD HI BARSNA AUR
    KHUD HI BHIGANA
    ACHCHA LAGTA HAI TUMHE PADHNA

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  3. wonderful.......
    best comment/ compliment ever..
    kavi to yumhi ho dost.........

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