Saturday, April 30, 2011

तुम कहते हो 
तुम से पहले भी कहा था कोई
उससे भी पहले कोई

प्यार होता है कोमल

इतना कि
पनपता है एक बार बस
सूख वा टूट जाता है खिलवाड़ से 


तुम कहते हो 
तुम से पहले भी कहा था कोई
उससे भी पहले कोई

मुझे पसंद है 
प्यार को पनपने देना 
अछूते कोनो को झंकृत करना
मुझे पसंद है तोड़ देना कोमल प्यार 

तुम कहते हो 
तुम से पहले भी कहा था कोई
उससे भी पहले कोई

कत्ल के कई इल्जाम है संवेदनाओ के 
मांगती हु मै स्थायित्व 
अंत से संबंधो के

मेरे मित्र 
तुम्हारी बात हो सकती है सच भी
मैंने नहीं कभी किया प्रेम
मेरे मित्र सच हो सकती है तुम्हारी बात भी

मैंने चाहा हमेशा 
करे न कोई प्यार कभी मुझे
प्रेम में सवांरते हो तुम केवल कोमलपन
तेरी भावना भर पाती है पोषण
सींचते  हो तुम ही ह्रदय का नम्र कोना

करते हो जब जब तुम प्रेम मुझे 
मै नहीं तुम ही होते हो निज दुनिया की धुरी

मेरे मित्र 
खिलवाड़ से सूखे/टूटे प्रेमोपरांत
बन पाते हो 
मेरे सखा 

मै चाहती हु 
तुमसे
तुमसे पहले कोई 
उससे पहले कोई












1 comment:

  1. kya baat hai.....
    kai prem me fansi hui aurat ke dimag me aisa hi aata hoga....
    ajkal par bhut hi badhiya kavita

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