1.
समतल ज़मीन पर,
इक टुकड़ा पत्थर।
मुझे आदत है, तेरे ठोकर की।
2.
मिलना, मिलते रहना
मरने में मज़ा आ जाता है।
3.
डर कभी न था,
ज़िन्दगी तुझसे जुदा होने का।
अब प्यार भी नहीं करता, तुमको।
समतल ज़मीन पर,
इक टुकड़ा पत्थर।
मुझे आदत है, तेरे ठोकर की।
2.
मिलना, मिलते रहना
मरने में मज़ा आ जाता है।
3.
डर कभी न था,
ज़िन्दगी तुझसे जुदा होने का।
अब प्यार भी नहीं करता, तुमको।
लाजवाब..........
ReplyDeleteलाजवाब.........जितेश.
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