१.
सिरों के परे, दिखती दुनिया विशाल,
सिरों मध्य मैं झूला।
२.
अटक गया मध्य कहीं मैं,
ज़िन्दगी है कि डमरू कोई।
३.
दोनों छोर खुले हुए
कई कई छेदों से बजता मैं।
सिरों के परे, दिखती दुनिया विशाल,
सिरों मध्य मैं झूला।
२.
अटक गया मध्य कहीं मैं,
ज़िन्दगी है कि डमरू कोई।
३.
दोनों छोर खुले हुए
कई कई छेदों से बजता मैं।
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