१.
कब्रगाहों में दफ्न
आशाओं के तेवर,
कुंडली मार छिप गयीं
योजनाएं ख़ुशी की,
और काई पर फिसल गई
तेरी हँसी
बेतरतीब बिला वज़ह ख्वाब दर ख्वाब आती रहती है।
परत दर परत जमते जाते हैं मुझ पर ख्वाब मेरे।
२.
नींद नहीं आती
ख्वाब आते रहे दिन औ रात।
३.
देखी बचपन में भूली भूली भुतहा फिल्मो सी
पता नहीं ख्वाब है या खुद मैं।
कब्रगाहों में दफ्न
आशाओं के तेवर,
कुंडली मार छिप गयीं
योजनाएं ख़ुशी की,
और काई पर फिसल गई
तेरी हँसी
बेतरतीब बिला वज़ह ख्वाब दर ख्वाब आती रहती है।
परत दर परत जमते जाते हैं मुझ पर ख्वाब मेरे।
२.
नींद नहीं आती
ख्वाब आते रहे दिन औ रात।
३.
देखी बचपन में भूली भूली भुतहा फिल्मो सी
पता नहीं ख्वाब है या खुद मैं।
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