Thursday, November 8, 2012

मिलते हम


1.

मिलते हम,
तेज़ रोशनी, घुप्प अँधेरा 
दीख पड़ता नहीं, कुछ।
रोशनी,
छीन लेती 
तुमको, मुझसे।

2.

निर्वात, भारहीन 
मिलते मैं, तुम।
भार छीन लेता
तुमसे, मैं 
तुम, मुझसे 

3.

उंचाई 
अलग करती हमको,
गिरने का डर।
मुक्त, गिरते हुए,
मिलते हम।

3 comments:

  1. mishra ji ... likha to achha hai par zara ye samjhaane ki kripa karein ki ye kaavy ki kounsi vidha hai. :)

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  2. पैरा वाइज़ नोट लिखने की सरकारी विधा ही हो शायद . मुझे पता नहीं. हो सकता है, क्षणिका में गिना जा सके.. कोई इस पर पीएचडी क्यों नहीं कर डालता..... हा हा हा

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